Chinnamasta 108 Names |
नमस्कार दोस्तों! आज के इस लेख में हम माँ छिन्नमस्तिका के 108 नाम जानेंगे और इसका पाठ कैसे करना है? वह भी जानेंगे।आप सभी से अनुरोध है, लेख पूरा पढ़े ताकि आपको कोई संदेह न रहे। फिर भी कोई समस्या आती है, तो आप हमें कमेंट में बता सकते हैं। हमारा यह लेख अगर आपको अच्छा लगे, तो अपने दोस्तों के साथ इसे शेयर जरूर करें। ताकि माता का आशीर्वाद सबको प्राप्त हो सके।
Warning⚠ : माता छिन्नमस्तिका बहुत ही करुणामई, ममतामई और दयालु हैं। लेकिन वह बहुत उग्र भी हैं। अतः किसी भी उग्र देवता की साधना करने मैं त्रुटियां नहीं होनी चाहिए। नहीं तो आपको इससे नुकसान भी हो सकता है। अपने गुरु के देखरेख में ही यह साधना करना चाहिए। इस साधना से यदि आपको कोई नुकसान होता है। तो इसकी जिम्मेदारी हम नहीं लेते हैं।
माँ छिन्नमस्तिका कौन है?
माँ छिन्नमस्तिका 10 महाविद्याओं में सबसे उग्र महाविद्या है। इसकी पूजा मुख्ता तांत्रिक समुदाय के लोग करते हैं। साधारण गृहस्थ व्यक्ति अगर इसे करना चाहे, तो अपने गुरु के देखरेख में करना चाहिए। मां छिन्नमस्तिका जितनी करुणामई है, उतने ही उग्र भी हैं। माँ छिन्नमस्तिका का साधन शत्रु का विनाश, गरीबी दूर करना, तरह-तरह के सिद्धियां प्राप्त करना या राहु दोष को खत्म करने जैसे चीजों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
इनके साधक संसार में अजय रहते हैं। माँ छिन्नमस्तिका की साधना करने वाले वाक सिद्ध होते हैं। कुंडलिनी शक्ति जागृत करने या अपने शरीर के आंतरिक शक्तियों को जागृत करने के लिए भी इस महाविद्या का साधना किया जाता है।
माता छिन्नमस्तिका की कहानी
कहानी बहुत ही पुराने समय की है। एक बार माता रानी अपने दो सखियों के साथ नहाने गई। उन दोनों का नाम था जाया और विजया । तीनों नदी में नहा रही थी। अचानक से जाया और विजया को बहुत तीव्र भूख लगी। उन दोनों ने माता से अनुरोध किया माता हमें भूख लगी है। हे माता! आप तो समस्त जगत का पालन करती हैं। सबका पेट भरती हैं, हमारा भी पेट भरें। उस वक्त वहां पर कुछ भी खाने को नहीं था। माता सोचने लगी कि इनका पेट कैसे भरा जाए। जंगल में इतने जानवर भी नहीं है, जिन्हें मारकर में इनका पेट भरूं। वे दोनों भूख से तड़पने लगे।
यह देखकर माता को उन पर दया आ गई। दयामय, करुणामई माता छिन्नमस्तिका के आँख भर आए। उनकी आँखों से आंसू छलक आए। जब उनकी भूख मिटाने के लिए कुछ भी ना मिल सका। तो उन्होंने स्वयं अपना ही शीश काटकर, उन दोनों को अपना ही रक्त पिलाया। रक्त के तीन धार निकले। एक धार माता स्वयं भी पी रही है। बाकी के दो धार उनकी दो सखियां जाया और विजया पी रही है।
माता छिन्नमस्तिका बहुत ही ममतामई देवी है। देवी अपने भक्तजनों के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। जो अपनी संतान प्रेम में अपना ही शीश काट सकती हैं। तो आप सोच सकते हैं। वे देवी क्या कर सकती हैं?
माता छिन्नमस्तिका का स्वरूप कैसा है?
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माता को कमल आसन पर विराजमान दिखाया जाता है। माता के चरणों के नीचे कामदेव और रति माँ काम क्रीड़ा में लगे हैं। यह इस बात को दर्शाता है कि माता अपने संतान के लिए काम भावना को भी त्याग चुकी है। माता के लिए अपने संतान से बढ़कर और कुछ भी नहीं है।
माॅं छिन्नमस्तिका का के 108 नाम का पाठ कैसे करें?
माॅं छिन्नमस्तिका 108 नाम पाठ करने की विधि:
- बिना दीक्षा लिए आप यह पाठ नहीं कर सकते हैं।
- इस पाठ को करने से पहले आपको अपने गुरु से अनुमति अवश्य लेनी चाहिए। अगर आपके गुरु का अनुमति मिल चुका है, तो आप यह पाठ कर सकते हैं।
- माँ छिन्नमस्तिका के 108 नाम पाठ करने मात्र से ही आपके सभी शत्रुओं का नाश होता है। निरंतर 41 दिनों तक इसका पाठ करना चाहिए।
- पाठ करते वक्त आपको लाल वस्त्र धारण करना है। लालासन पर बैठकर माँ छिन्नमस्तिका के फोटो के सामने एक दिया जलाएं।
- सबसे पहले अपने गुरु को प्रणाम करें। गुरु से अनुमति प्राप्त करने के बाद।
- गणेश जी से अनुमति लें और प्रार्थना करें कि बिना किसी विघ्न बाधा के आपकी यह साधना पूरी हो।
- उसके बाद महादेव से प्रार्थना करें।
- अब आपको नीचे दिए गए 108 नाम का पाठ करना है:
माँ छिन्नमस्ता के 108 नाम ॥ श्री छिन्नमस्तादेवि अष्टोत्तरशतनामावली ॥
- ॐ छिन्नमस्तायै नमः ।
- ॐ महाविद्यायै नमः ।
- ॐ महाभीमायै नमः ।
- ॐ महोदर्यै नमः ।
- ॐ चण्डेश्वर्यै नमः ।
- ॐ चण्डमात्रे नमः ।
- ॐ चण्डमुण्डप्रभञ्जिन्यै नमः ।
- ॐ महाचण्डायै नमः ।
- ॐ चण्डरूपायै नमः । ९० ।
- ॐ चण्डिकायै नमः ।
- ॐ चण्डखण्डिन्यै नमः ।
- ॐ क्रोधिन्यै नमः ।
- ॐ क्रोधजनन्यै नमः ।
- ॐ क्रोधरूपायै नमः ।
- ॐ कुह्वे नमः ।
- ॐ कलायै नमः ।
- ॐ कोपातुरायै नमः ।
- ॐ कोपयुतायै नमः । १८ ।
- ॐ कोपसंहारकारिण्यै नमः ।
- ॐ वज्रवैरोचन्यै नमः ।
- ॐ वज्रायै नमः ।
- ॐ वज्रकल्पायै नमः ।
- ॐ डाकिन्यै नमः ।
- ॐ डाकिनीकर्मनिरतायै नमः ।
- ॐ डाकिनीकर्मपूजितायै नमः ।
- ॐ डाकिनीसङ्गनिरतायै नमः ।
- ॐ डाकिनीप्रेमपूरितायै नमः । २७ ।
- ॐ खट्वाङ्गधारिण्यै नमः ।
- ॐ खर्वायै नमः ।
- ॐ खड्गखर्परधारिण्यै नमः ।
- ॐ प्रेतासनायै नमः ।
- ॐ प्रेतयुतायै नमः ।
- ॐ प्रेतसङ्गविहारिण्यै नमः ।
- ॐ छिन्नमुण्डधरायै नमः ।
- ॐ छिन्नचण्डविद्यायै नमः ।
- ॐ चित्रिण्यै नमः । ३६ ।
- ॐ घोररूपायै नमः ।
- ॐ घोरदृष्ट्यै नमः ।
- ॐ घोररावायै नमः ।
- ॐ घनोदर्यै नमः ।
- ॐ योगिन्यै नमः ।
- ॐ योगनिरतायै नमः ।
- ॐ जपयज्ञपरायणायै नमः ।
- ॐ योनिचक्रमय्यै नमः ।
- ॐ योनये नमः । ४५ ।
- ॐ योनिचक्रप्रवर्तिन्यै नमः ।
- ॐ योनिमुद्रायै नमः ।
- ॐ योनिगम्यायै नमः ।
- ॐ योनियन्त्रनिवासिन्यै नमः ।
- ॐ यन्त्ररूपायै नमः ।
- ॐ यन्त्रमय्यै नमः ।
- ॐ यन्त्रेश्यै नमः ।
- ॐ यन्त्रपूजितायै नमः ।
- ॐ कीर्त्यायै नमः । ५४ ।
- ॐ कपर्दिन्यै नमः ।
- ॐ काल्यै नमः ।
- ॐ कङ्काल्यै नमः ।
- ॐ कलकारिण्यै नमः ।
- ॐ आरक्तायै नमः ।
- ॐ रक्तनयनायै नमः ।
- ॐ रक्तपानपरायणायै नमः ।
- ॐ भवान्यै नमः ।
- ॐ भूतिदायै नमः । ६३ ।
- ॐ भूत्यै नमः ।
- ॐ भूतिदात्र्यै नमः ।
- ॐ भैरव्यै नमः ।
- ॐ भैरवाचारनिरतायै नमः ।
- ॐ भूतभैरवसेवितायै नमः ।
- ॐ भीमायै नमः ।
- ॐ भीमेश्वर्यै नमः ।
- ॐ देव्यै नमः ।
- ॐ भीमनादपरायणायै नमः । ७२ ।
- ॐ भवाराध्यायै नमः ।
- ॐ भवनुतायै नमः ।
- ॐ भवसागरतारिण्यै नमः ।
- ॐ भद्रकाल्यै नमः ।
- ॐ भद्रतनवे नमः ।
- ॐ भद्ररूपायै नमः ।
- ॐ भद्रिकायै नमः ।
- ॐ भद्ररूपायै नमः ।
- ॐ महाभद्रायै नमः । ८१ ।
- ॐ सुभद्रायै नमः ।
- ॐ भद्रपालिन्यै नमः ।
- ॐ सुभव्यायै नमः ।
- ॐ भव्यवदनायै नमः ।
- ॐ सुमुख्यै नमः ।
- ॐ सिद्धसेवितायै नमः ।
- ॐ सिद्धिदायै नमः ।
- ॐ सिद्धिनिवहायै नमः ।
- ॐ सिद्धायै नमः । ९० ।
- ॐ सिद्धनिषेवितायै नमः ।
- ॐ शुभदायै नमः ।
- ॐ शुभगायै नमः ।
- ॐ शुद्धायै नमः ।
- ॐ शुद्धसत्त्वायै नमः ।
- ॐ शुभावहायै नमः ।
- ॐ श्रेष्ठायै नमः ।
- ॐ दृष्टिमयीदेव्यै नमः ।
- ॐ दृष्टिसंहारकारिण्यै नमः । ९९ ।
- ॐ शर्वाण्यै नमः ।
- ॐ सर्वगायै नमः ।
- ॐ सर्वायै नमः ।
- ॐ सर्वमङ्गलकारिण्यै नमः ।
- ॐ शिवायै नमः ।
- ॐ शान्तायै नमः ।
- ॐ शान्तिरूपायै नमः ।
- ॐ मृडान्यै नमः ।
- ॐ मदनातुरायै नमः । १०८ ।
Warning⚠ : यह एक गुप्त साधना है। इस साधना को छिपकर किया जाता है। जहां पर आप यह साधना करेंगे, उसे कमरे में किसी को भी आने की अनुमति नहीं है। आप साधना के विषय में किसी से भी बात नहीं कर सकते हैं। साधना के वक्त अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें। किसी पर भी क्रोध न करें। साधना के दिनों में कोई भी गलत काम ना करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।